किशान की परेसानी
बयां करना चाहूंगा में किशान की परेसानी.
मेहनत कर बीता बचपन और जबानी,
राह देखत थक गइ अंखियां वरसा ना ये पानी,
सूखे धान गन्ना बनी बहुत बडी परेसानी,
बयां करना चाहूंगा में किशान की परेसानी.
बडा समय फसल बदली आइ गेंहू की चानी,
मेमहनत कर करी वुआइ नेहर में न था पानी,
उजडी एभी फसल हुइ बहुत हानी,
बयां करना चाहूंगा में किशान की परेसानी.
बयां करना चाहूंगा में किशान की परेसानी.
हुइ फसल चने की दे नलकूप का पानी,
किशान वोला घरपर अपने इस फसल से दूर होगी परेशानी,
गया मंडी देख गिरे भाव हुइ चिंता जनक हैरानी,
किशान वोला घरपर अपने इस फसल से दूर होगी परेशानी,
गया मंडी देख गिरे भाव हुइ चिंता जनक हैरानी,
बयां करना चाहूंगा में किशान की परेसानी.
देखी घर की तंगी फिर भी न चली मनमानी
लगा फांसी दी जान परिबार पे बिपदा आनी,
दिखा मुआवजे की झॉकी नेताओं ने छाती तानी
बो कल फिर भूल जाएगे इस किशान की कहानी।
देखी घर की तंगी फिर भी न चली मनमानी
लगा फांसी दी जान परिबार पे बिपदा आनी,
दिखा मुआवजे की झॉकी नेताओं ने छाती तानी
बो कल फिर भूल जाएगे इस किशान की कहानी।
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